Tuesday 22 December 2015

कहानी भस्म आरती की

महाकालेश्वर मंदिर : भस्म आरती :

महाकालेश्वर मंदिर जहां प्राचीन समय में भस्म आरती पवित्र राख के साथ की जाती थी,  वह राख चिता द्वारा उत्पन्न हुयी गर्म और जलती राख होती थी
ऐसा कहा जाता है कि वह राख जिससे शिवलिंग को रोज सुबह नहलाया जाता था उस समय वह एक लाश की कि होना चाहिए, जो एक दिन पहले दाह गयी हो|
हालांकि, अब लगभग 15 वर्षों के बाद से मंदिर भस्म के साथ आरती की प्रदर्शित कर रहा हे जो गाय के गोबर से बानी होती हे जिसे हम विभूति कहते है |
किंवदंती है कि जो इस अनुष्ठान में सम्मिलित होते है उनकी अकाल मृत्यु कभी नहीं होती है, सबसे बुनियादी रूप के लिए इसकी चिता पूरी तरह से माया को कम करने के लिए है: विभूति (भस्म)

इस सवाल का जवाब केवल तभी पाया जा सकता है,जब आप यह समझने की कोशिश करेंगे की शिव और नारायण  माया के साथ कैसे व्यवहार करते थे| चेतना के शिखर तक पहुँचने के दो तरीके है: पहला दाहिना हाथ(मुख्य रूप से अघोरी और तांत्रिक द्वारा अपनाया जाने वाला) दूसरा बायां हाथ (वैष्णव और शिव द्वारा अपनाया जाने वाला और योग के चार रास्तों के रूप में अपनाया जाने वाला)लेकिन यह फर्क क्यों जबकि यह दोनों रस्ते हमे मोक्ष तक ले जा रहे है..?


अंतर यह है की आप माया के साथ कैसे व्यवहार करते है...?

शिव ने पूरी तरह से माया को त्याग दिया, वहीँ दूसरी और नारायण ने माया को अपना लिया, लेकिन उससे प्रभावित नहीं हुए|
ब्रह्मा और विष्णु भगवान की तरह शिव जी ने माया को नियंत्रित करने की कोशिश कभी नहीं की|हम सभी समुद्र मंथन की कथा से अवगत है, सबको इस से कछ प्राप्त हुआ है, यहां तक कि विष्णु भगवान को भी|
लेकिन जब हलाहल बहार आया कोई भी उसे लेना नहीं चाहता था| तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव की मदद ली जिनकी उदासीनता ने उन्हें सक्षम बनाया हलाहल स्वीकार कर पिने के लिए (यही तरीका तांत्रिक और अघोरी माया को दूर करने के लिए अपनाते है)|
यहाँ आप देख सकते हैं विष्णु भगवान ब्रह्म जी के एक बहुत ही समझदार रूप में कार्य कर रहे है। जो देवताओ का पक्ष लेकर उनकी मादा कर रहे है, वही दूसरी और शिव जी किसी की साइड नहीं लेते , न देवो की न असुरो की| इसी तरह वह भोले नाथ बने जिन्हे संतुष्ट करना आसान है, क्योंकि शिव कुछ नहीं के लिए किसी भी आंतरिक मूल्य है। आज अगर आप देखे तो शिव जी को सिर्फ दूध और बेल पत्र अर्पित किये जाते है जो माया की बुनियादी रूप में मौजूद है, क्यूंकि शिव जी ने इसमें कभी माया को शामिल नहीं किया, वही दूसरी और विष्णु जी को मक्खन या दही अर्पित किये जाते है,क्यूंकि विष्णुजी माया के साथ खेलना पसंद करते है|इसलिए चिता माया को पूरी तरह से दूर करती है|

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