Saturday 21 May 2016

@Simhastha kumbha Mela: 2040 में दो बार होगा सिंहस्थ का आयोजन

सिंहस्थ ऐसा पर्व है, जो राशियों के एक-दूसरे में प्रवेश और कालगणना चक्र के आधार पर मनाया जाता है। इसी गणना के आधार पर 2028 के बाद 2040 में दो बार सिंहस्थ का आयोजन होगा। 84 साल बाद सांतवें सिंहस्थ में ऐसी स्थिति बनती है, जब इसका आयोजन दो बार होता है। इसे लुप्ताब्ध वर्ष कहते हैं। ज्योतिष शास्त्रों में लिखा गया हैज्योतिष शास्त्रों में लिखा गया है बृहस्पति (गुरु) सुमारे 85
वर्षात् एकासंवत्सराचा लोपो होता अर्थात 85 वर्ष के अंतराल में 85 वें वर्ष को लुप्ताब्ध वर्ष माना जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. आनंद शंकर व्यास के अनुसार मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में बृहस्पति के आने से सिंहस्थ होता है। इसका सिंह और गुरु भ्रमण चक्र से खास संबंध है। समुंद्र मंथन के बाद अमृत कलश के संरक्षण में सूर्य, सिंह और गुरु का महत्वपूर्ण योगदान था। इनके योग के अभाव में सिंहस्थ मनाया ही नहीं जा सकता है
12 वर्ष में मिलते हैं सिंह-गुरु पंचाग, कालगणना और शास्त्रों के अनुसार सूर्य-चंद्र तो प्रतिवर्ष मिलते हैं पर सिंह का गुरु में प्रवेश 12 वर्षों में एक बार होता है। गुरु की चाल सिंह से तेज है और प्रतिवर्ष इनके काल, घड़ी और पल में चार दिन का अंतर आ जाता है। यानि गुरु एक साल में सिंह से चार दिन आगे हो जाता है। प्रतिवर्ष के यह चार दिन 84 वर्ष में एक वर्ष की अवधि के बराबर होते हैं, जिससे 85 वें वर्ष में लुप्ताब्ध वर्ष की स्थिति बनती है। इसी के चलते 85 वें वर्ष के दौरान एक वर्ष का अंतर आता है। लुप्ताब्ध के कारण 85 वर्षों के दौरान 6 सिंहस्थ तो 12 वर्ष में हो सकते है, पर सांतवां सिंहस्थ 11 वर्ष में होगा। 12 साल में सिंहस्थ के आयोजन की स्थिति में 24 वर्ष बाद 2040 में लुप्ताब्ध वर्ष के ऐसे हालात बन रहे हैं। इसे लेकर मतभेद सामने आ सकते हंै। ज्ञात इतिहास में चार मर्तबा दो-दो सिंहस्थ

ज्ञात इतिहास में ऐसे चार अवसर आए हैं, जब सिंहस्थ का आयोजन दो-दो बार हुआ है। इसमें 1790-91, 1873-74 में ऐसा हुआ है। इसके अलावा 1956 में दंड़ स्वामियों ने और 1957 में षड्दर्शन अखाड़ों ने सिंहस्थ मनाया था। 1968 में वैष्णव अखाड़ों ने और 1969 में शेष अन्य अखाड़ों ने सिंहस्थ मनाया था।


No comments:

Post a Comment