Monday 25 April 2016

बहिष्कार और धिक्कार के बीच शांति की पुकार

सिं हस्थ के पहले शाही स्नान में भव्यता के अभाव के बीच दूसरे शाही स्नान के बहिष्कार की साधु-संतों की चेतावनी अत्यंत चिंताजनक है। वैशाख का सूरज तन काे जला रहा है, लेकिन साधु-संतों का भ्रूकुटि-भंग श्रद्धालुओं के मन को सुलगा रहा है। श्रद्धालु शांति की तलाश में सिंहस्थ भूमि में भटक रहे हैं। उनके कानों में सत्संग का अमृत कम, बहिष्कार की चेतावनियां और निकृष्ट सिद्ध हो रही नौकरशाही के धिक्कार के स्वर अधिक गूंज रहे हैं। यह चांडाल योग का दुष्प्रभाव है या नेतृत्व और नौकरशाही की चांडाल वृत्ति का असर,
श्रद्धालु समझ नहीं पा रहे। वैशाख जिसमें पानी पिलाना सबसे बड़ा धर्म है, उसी आग उगलते महीने में यदि पीले चावल देकर बुलाए गए साधु-संत पानी के लिए तरस रहे हैं तो उनका आक्रोश स्वाभाविक है। दूसरे शाही स्नान से पहले ईश्वर न करे पर साधु-संत यदि सिंहस्थ भूमि से भारी मन के साथ प्रस्थान कर गए तो क्या होगा? सोचकर भी उज्जैन की 6 लाख से ज्यादा आबादी सिहर रही है। केवल हिंदू ही नहीं, मुस्लिम और अन्य सभी समुदायों में यह आज सबसे बड़ी चर्चा का विषय है। आखिर मुस्लिम हो या बोहरा, सिख हो या जैन सब जलदान की महिमा और आतिथ्य सत्कार के संस्कारों से परिपूर्ण हैं। वे इसकी गंभीरता को गहरे तक समझते हैं और मुट्ठीभर अफसरों और गिनती के नेताओं की चूकों से चिंतित हैं। उज्जैन की जो जनता पूरे बारह बरस यानी एक युग साधु-संतों और देशभर से शांति और सत्संग की तलाश में आने वाले श्रद्धालुओं की मेजबानी कर धन्य होती है, आज श्रद्धा को यूं तार-तार होते देख दु:खी हो रही है। सिंहस्थ मूलत: साधु-संतों का ही समागम है। अब साधु-संतों पर ही सबकी निगाह है। जनता भरे हृदय से प्रार्थना कर रही है, कृपया आप बहिष्कार करना तो दूर, ऐसी बात भी न करें। आप यदि भारी मन से प्रस्थान कर गए तो पीढ़ियों तक हम स्वयं को क्षमा नहीं कर पाएंगे। संन्यास आपका मार्ग है, वैराग्य आपका व्यक्तित्व और तप आपका शृंगार। नेतृत्व ने जिस अदूरदर्शिता का प्रदर्शन किया और नौकरशाही ने जिस अकर्मण्यता का, उसका दंड लाखों आम लोगों की निर्मल श्रद्धा को न मिले। सिंहस्थ का सार सत्संग में है, आनंद में और शांति में। आप यही देने आएं हैं और आम श्रद्धालु यही लेने आ रहे हैं। आप भी अमृत का सार ग्रहण करने की कृपा करें और अव्यवस्थाओं की थोथी धूल को उड़ा दें। इसी में आपकी गरिमा है और हमारा सौभाग्य।
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