सिंहस्थ में महंत रामगिरिजी का पंडाल बड़नगर रोड पर लगा है। वे हमेशा अपने पास डंडा अवश्य रखते हैं। करीब 25 साल पहले उन्होंने संन्यास लिया था। एक बार वे अपने भक्त के घर गए। वहां उन्हें करीब तीन फीट लंबा डंडा दिखा। यह उन्हें अच्छा लगा तो भक्त ने उन्हें भेंट कर दिया। तब से वे इसे हर समय अपने पास ही रखते हैं। भजन और पूजन के समय भी ये साथ रहता है।
भक्तों के लिए एसी रूम, खुद ठहरे हैं टेंट की कुटिया में
रामगिरिजी महाराज की खास बात यह है कि वे अपने पंडाल के प्रवेश द्वार के पास बनी टेंट की कुटिया में ही रहते हैं। कुटिया के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं।
कोई भी उनसे आकर मिल सकता है। वे कहते हैं संन्यास लिया है तो बंद कुटिया में रहने का क्या अर्थ।
साधु का जीवन तो हमेशा खुला होना चाहिए। हालांकि उनके पंडाल में एसी रूम भी बनवाए गए हैं पर इनमें केवल भक्त लोग ही रहते हैं। वे तो अपनी कुटिया की खाट पर बैठते हैं और वहीं शयन भी करते हैं। भोजन भी वैसा ही करते हैं जो सबके लिए बनता है।
डंडे के साथ ही लेंगे समाधि
सिंहस्थ के दौरान रामगिरिजी अपने डंडे के साथ ही समाधि लेंगे। अभी उन्होंने समाधि का दिन तय नहीं किया है, लेकिन जल्द ही इस पर निर्णय लेंगे। करीब 12 साल तक उन्होंने केवल फलाहार पर रहकर ही जीवन जीया। के स्पर्श से छू-मंतर होती है पीड़ा
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भक्तों के लिए एसी रूम, खुद ठहरे हैं टेंट की कुटिया में
रामगिरिजी महाराज की खास बात यह है कि वे अपने पंडाल के प्रवेश द्वार के पास बनी टेंट की कुटिया में ही रहते हैं। कुटिया के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं।
कोई भी उनसे आकर मिल सकता है। वे कहते हैं संन्यास लिया है तो बंद कुटिया में रहने का क्या अर्थ।
साधु का जीवन तो हमेशा खुला होना चाहिए। हालांकि उनके पंडाल में एसी रूम भी बनवाए गए हैं पर इनमें केवल भक्त लोग ही रहते हैं। वे तो अपनी कुटिया की खाट पर बैठते हैं और वहीं शयन भी करते हैं। भोजन भी वैसा ही करते हैं जो सबके लिए बनता है।
डंडे के साथ ही लेंगे समाधि
सिंहस्थ के दौरान रामगिरिजी अपने डंडे के साथ ही समाधि लेंगे। अभी उन्होंने समाधि का दिन तय नहीं किया है, लेकिन जल्द ही इस पर निर्णय लेंगे। करीब 12 साल तक उन्होंने केवल फलाहार पर रहकर ही जीवन जीया। के स्पर्श से छू-मंतर होती है पीड़ा
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