जन्म से एक पैर से दिव्यांग होने के बावजूद छात्र जीवन में विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में गोल्ड मेडल जीता। 14 वर्ष की आयु में घर छोड़ संत बन गए। इन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत बना लिया। अब साइकिल से देशभर में घूम रहे हैं। मंगलनाथ क्षेत्र स्थित बैजनाथ धाम आजाद नगर खालसा ग्वालियर 14 भाई त्यागी के आश्रम में आए संत महावीरदास त्यागी जन्म से ही एक पैर से दिव्यांग हैं। इसके बाद भी उन्होंने शासकीय सिंधिया विद्यालय ग्वालियर में अध्ययन करते हुए खेल प्रतियोगिताओं में दिल्ली,
ग्वालियर, इंदौर से गोल्ड मेडल व प्रमाण-पत्र प्राप्त किए। 14 वर्ष की आयु में संतों के सानिध्य में आने पर संत जीवन अपना लिया।
प्रत्येक व्यक्ति में अलग विशेषता
महावीरदास जी ने कहा कि संसार के प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ विशेषता है। भगवान ने मुझे दिव्यांग बनाया तो कुछ अलग शक्तियां दी है। मैं 1 दिन में साइकिल से 200 किमी यात्रा कर देश भ्रमण कर रहा हूं। दो वर्ष में एक बार माता वैष्णोदेवी के दर्शन को जाता हूं। गिरनार पर्वत की 9 हजार 999 सीढ़ियां 4 घंटे में चढ़ चुका हूं। इस वर्ष साइकिल से ही अमरनाथ यात्रा की योजना है। संत आश्रम में साइकिल पर योगा करना जैसे करतब भी दिखा रहे हैं।
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ग्वालियर, इंदौर से गोल्ड मेडल व प्रमाण-पत्र प्राप्त किए। 14 वर्ष की आयु में संतों के सानिध्य में आने पर संत जीवन अपना लिया।
प्रत्येक व्यक्ति में अलग विशेषता
महावीरदास जी ने कहा कि संसार के प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ विशेषता है। भगवान ने मुझे दिव्यांग बनाया तो कुछ अलग शक्तियां दी है। मैं 1 दिन में साइकिल से 200 किमी यात्रा कर देश भ्रमण कर रहा हूं। दो वर्ष में एक बार माता वैष्णोदेवी के दर्शन को जाता हूं। गिरनार पर्वत की 9 हजार 999 सीढ़ियां 4 घंटे में चढ़ चुका हूं। इस वर्ष साइकिल से ही अमरनाथ यात्रा की योजना है। संत आश्रम में साइकिल पर योगा करना जैसे करतब भी दिखा रहे हैं।
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