Thursday 28 April 2016

दिनभर धूप में बैठ कर रहे 'सूर्यतप साधना'

सिंहस्थ मेले में तप का संकल्प लेकर कठिन साधना करने वालों की सूची लंबी है। कोई वर्षों से हाथ उठाकर हठयोग कर रहा है, तो कोई संत सालों से कांटे पर सोते हैं। अनेकों संत चिलचिलाती धूप में धूनी रमाते हैं तो कोई पेड़ से लटककर ईश्वर प्राप्ति करना चाहता है।

इन सबके इतर मोहनपुरा पेट्रोल पंप के पास अवधूत गति प्राप्त करने के लिए संत सूर्यतप साधना में लीन हैं। सनातन परंपरा में इसे सबसे कठिन माना गया है। साधना में लीन संत दिनभर खुले आसमान के नीचे बैठकर ईश्वर का ध्यान करते हैं।


सिर्फ पानी पास रखते हैं

साधना में लीन अवधूत स्वामी जनकेश्वरानंद, स्वामी कोमलानंद और स्वामी महेश्वरानंद ने बताया कि घेर में बैठने के बाद साधक एक ही जगह पर सूर्यास्त तक साधना में लीन रहता है। साधक के पास सिर्फ पानी पीने की व्यवस्था होती है जबकि भोजन वह केवल शाम को करता है। अवधूत गति प्राप्त करने वाला साधक धन को हाथ नहीं लगाता। साधकों ने बताया कि मेरुदंड पर सूर्य की शक्तियां ली जाती हैं। अवधूत गति आने पर साधक को अहसास होने लगता है कि उस पर धूप,गर्मी, बरसात और ठंड का कोई विपरीत असर नहीं होगा।

क्या है सूर्यतप साधना

अवधूत स्वामी प्रमोदानंद बताते हैं-सूर्यतप साधना बहुत कठिन है। साधक स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देकर सुबह साधना के लिए बैठता है। प्रात:काल से सूर्यास्त तक खुले आसमान के नीचे एक ही मुद्रा बनाकर ईश्वर की आराधना करता है। साधक पर सूर्यताप का कोई असर नहीं पड़ता।

स्वामीजी के मुताबिक इस साधना से शरीर को सभी ऋतुओं के उतार-चढ़ाव को बर्दाश्त करने की ताकत मिलती है। कुंभ के अवसर पर बसंत पंचमी से लेकर ज्येष्ठ मास के गंगा दशहरा तक तप में बैठना पड़ता है। बरसात और ठंड के दिनों में भी तप ऐसा ही होता है।

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