Monday 25 April 2016

सिंहस्थ : ये आस्था है, राह बना ही लेती ह

 उज्जैन। भीड़ भरी बसों में, ट्रेनों में लंबे सफर के बाद सिंहस्थ भूमि पर तपती दोपहरी में कई किमी की पैदल यात्रा। कहीं व्यवस्था बनाने में जुटी खाकी की झिड़की तो कहीं धक्के। कोई परवाह नहीं। कुछ भी हो। अमृतमयी में एक पवित्र डुबकी और राजाधिराज महाकालेश्वर की एक झलक के आगे सबकुछ गौण है।
मोक्षदायिनी के तट पर छाए महाकुंभ के उल्लास के बीच इलाहाबाद से आए एक सज्जन मिले। पूछा-कोई परेशानी तो नहीं। बोले-कैसी परेशानी। महाकाल की
धरा पर अमृत नहान को आए हैं। मोक्षदायिनी में एक डुबकी ही सारी थकान, सारी शिकायतें दूर कर देती है।पास ही अनूठे भेष में एक साधु खड़े थे। सवाल पर अक्खड़ अंदाज में बोले-सनातन परंपरा में कुंभ से बढ़कर कुछ भी नहीं। शिप्रा में डुबकी तो लगानी ही है। इस बीच हजारों-हजार कंठों से एक साथ शिप्रे हर और जय महाकाल का घोष गूंज उठा। सारा माहौल अद्भुत धर्ममयी उल्लास से सराबोर हो गया। वाकई, जितनी अनूठी यह महाकाल की नगरी है, जितना अनूठा यह महापर्व है, उतने ही अनूठे कुंभनगरी में आए मेहमान हैं। यह आस्था है। धर्म के अमृत के लिएराह बना ही लेती है।

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