Thursday 28 April 2016

जहां गरजी थीं बोफोर्स तोपें, वहां गूंजे वेदमंत्र-योगेश्वर दास


दरअसल, यहां भारतीय सेना, अर्धसैनिक बल और पुलिस के शहीदों की स्मृति में 100 कुंडीय अतिविष्णु महायज्ञ किया जा रहा है। इस महायज्ञ में सवा करोड़ से ज्यादा आहुतियां दी जाएंगी, जिसमें शहीद परिवार के करीब 400 परिजन भी शामिल हो रहे हैं। संत योगेश्वर दास से जब बातचीत का सिलसिला शुरू करते हुए पूछा कि आखिर इस तरह के यज्ञ की प्रेरणा कहां से मिली? उन्होंने कहा कि मैं सैन्य परिवार से हूं। मेरे पिता, भाई और मित्र सेना में रहे हैं। देशभक्ति मुझे विरासत में मिली है।


उन्होंने कहा कि भूमि, अन्न और वस्त्र आदि का दान तो सभी करते हैं, लेकिन प्राण दान तो हमारे जांबाज सैनिक ही करते हैं, जो देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। हमें उनकी शहादत को हमेशा याद रखना चाहिए। बस, यहीं से निश्चय किया कि शहीदों के लिए कुछ किया जाना चाहिए और अतिविष्णु यज्ञों का सिलसिला शुरू हो गया। मेरा विश्वास है कि यज्ञकुंड से उठता धुआं शहीदों तक जरूर पहुंचेगा। वे कहते हैं कि मुझे खुशी है कि ईश्वर ने धर्म के साथ ही देशभक्ति का रास्ता भी दिखाया।

ज्यादातर यज्ञ सीमांत क्षेत्रों में : जम्मू के ब्राह्मण परिवार में जन्मे योगेश्वरदास बताते हैं कि पहला यज्ञ वर्ष 2003 में जम्मू तवी में हुआ था। इसके बाद रियासी, विशनाह, उधमपुर, रामनगर, सांबा, अखनूर, कठुआ, किंतर, राजपुरा, द्रास कारगिल, हरिद्वार, इलाहाबाद आदि स्थानों पर अब तक 25 महायज्ञ संपन्न हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि कारगिल में तो तोलोलिंग पहाड़ के नीचे उस स्थान पर 750 ब्राह्मणों ने वेद मंत्रों से यज्ञ संपन्न कराया था, जहां कारगिल युद्ध के दौरान बोफोर्स तोपें गरजी थीं। सबसे अहम बात यह है कि वहां एक भी हिन्दू नहीं था, मुस्लिम परिवारों ने खुशी-खुशी यज्ञ के लिए अपनी भूमि उपलब्ध करवाई थी। यह बहुत बड़ा संदेश है।

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